झाबुआ से भोपाल तक

“शिक्षा व्यवस्था में लापरवाही: झाबुआ जिले के मांडली संकुल की घटना पर एक विश्लेषण”

इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए त्वरित जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता

सुनील डाबी की कलम से …….
भारत में शिक्षा का अधिकार एक महत्वपूर्ण और संवैधानिक मुद्दा है। खासकर आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा देने की दिशा में राज्य सरकारें और गैर-सरकारी संगठन कई प्रयास कर रहे हैं। लेकिन, हाल ही में झाबुआ जिले के मांडली संकुल स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में जो घटना सामने आई है, उसने न केवल शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाए हैं, बल्कि शिक्षक की जिम्मेदारी और बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन को भी उजागर किया है।
घटना का विवरण:
झाबुआ जिले के मेघनगर क्षेत्र के मांडली संकुल में स्थित गुवाली प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में छात्रों से एक मृत बिल्ली को उठवाने का मामला सामने आया। यह कार्य, जो एक सफाई कर्मचारी द्वारा किया जाना चाहिए था, शिक्षकों द्वारा छात्रों से करवाया गया। इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें शिक्षक छात्रों को आदेश देते हुए दिखाई दे रहे हैं।
*शिक्षक और बच्चों की भूमिका*
शिक्षकों का कर्तव्य और जिम्मेदारी: शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनका मुख्य कार्य बच्चों को शिक्षा देना और उन्हें जीवन की बेहतर दिशा दिखाना है। लेकिन इस घटना ने दिखा दिया कि कुछ शिक्षक न केवल शिक्षा देने में नाकाम हैं, बल्कि बच्चों से गैर-शैक्षिक कार्य करवाने का काम भी करते हैं।  बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उनका सम्मान करना समाज की जिम्मेदारी है। बच्चों से मृत जानवर को उठवाना न केवल एक अमानवीय कृत्य है, बल्कि यह बाल अधिकारों का भी उल्लंघन है।
*समाज और शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव*
आदिवासी बच्चों पर विशेष प्रभाव: आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता दोनों ही मुद्दे हैं। जब ऐसे बच्चों से इस प्रकार के अपमानजनक कार्य करवाए जाते हैं, तो इससे उनका मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है और वे शिक्षा से विमुख हो सकते हैं।
समाज में बच्चों की भूमिका: जब बच्चों से काम करने की बजाय उन्हें मानसिक और शैक्षिक विकास के अवसर मिलते हैं, तो समाज में सकारात्मक बदलाव संभव है। इस प्रकार के कृत्यों से समाज में नकारात्मक संदेश जाता है, जो आगे चलकर शिक्षा व्यवस्था के प्रति विश्वास को कमजोर कर सकता है।
*कानूनी दृष्टिकोण*
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE): शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी स्कूल में बच्चों से शारीरिक श्रम नहीं लिया जा सकता है। इस प्रकार की घटनाएँ RTE का उल्लंघन करती हैं।बाल श्रम निषेध कानून: भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनों के तहत बच्चों से किसी भी प्रकार का श्रम करवाना गैरकानूनी है। इस घटना में बच्चों को शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर किया गया, जो कानूनन गलत है।
*सख्त कार्यवाही*
इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए त्वरित जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। दोषी शिक्षकों को निलंबित किया जाना चाहिए, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
झाबुआ जिले के इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा व्यवस्था में कई स्तरों पर सुधार की आवश्यकता है। बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में, समाज में और अधिक जागरूकता की आवश्यकता को दर्शाता है। इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षकों, स्कूल प्रशासन, और सरकार को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि बच्चों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का सम्मान मिले और वे एक अच्छे भविष्य की ओर बढ़ सकें।

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