झाबुआ

विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष …..?

आदिवासी परंपराओ को संजोते हुवे समाज को आगे ले जाने का लिया संकल्प

निर्भयसिंह ठाकुर पिटोल* –
जिले भर में मनाऐ गऐ विश्व आदिवासी दिवस की झलक म.प्र. एवं गुजरात राज्य से सटे पिटोल में भी देखने को मिली। आदिवासी समुदाय की संास्कृतिक परंपराओं ओर योगदान को सम्मानित करने ओर उनकी समस्याओं के प्रति जागरुकता बढाने का प्रयास करने का संकल्प लेकर उनके अधिकारों व हितों की रक्षा करने के लिये एकजुटता के साथ एक रेली पिटोल नगर में निकाली गई। आधुनिक लिबास से परे हटकर अपने पारंपरिक लिबास में हाथ में तीर कमान लिये  समाज के जन प्रतिनिधी इस रेली की अगुआई कर रहे थे।
         पिटोल के खेल मैदान पर एकत्रित होकर आदिवासी समाज के अलग अलग संगठनों ने समाज के महिला पुरुषों के साथ पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ एक जुलुस निकाला। जुलुस पिटोल नगर में होते हुवे स्थानीय बस स्टेण्ड पर पहुंचा। यहां जुलुस का समापन करके वे दोपहर में झाबुआ के लिये निकल गऐ।
               *चुनोतियों के बीच जीवन का संघर्ष* 
    आदिवासी जन प्रतिनिधी पारसिंग खराडी ने इस दौरान एक मुलाकात में बताया कि जंगलों पहाडों की तलहटीयों में बसे आदिवासीयों के निवास भोगोलिक कठिनाईयां , कुछ युवाओं में नशे की बढती लत, ओर बेहतर अवसरों के लिये होने वाला पलायन बडी चुनोतियां है। बडा खतरा उनकी संस्कृति के क्षरण का है, जो बाहरी चमक दमक में अपनी पहचान खो रही है। उनके विकास की कुछ वे सरकारी योजनाऐं उदासीनता ओर कई कारणों से उन तक नहीं पहुंच पाती जो असल में उनके लिये बनी है। बस अब इसी संकल्प के साथ वे समाज के बीच पहुंचेगें ओर जन जागरण भी करेंगे कि अवसर का लाभ लो। जागों ओर आगे आओ। आदिवासी जन प्रतिनिधी काना गंुडिया ने भी बताया कि यह एक उत्सव नहीं बल्कि संकल्प दिवस है कि उनकी संस्कृति बचे भी , बढे भी ओर आने वाली पीढियों को दिशा भी दे।
              *राखी, जुलुस व धर्मसभा की रोनक थी कस्बे में* 
     शनिवार को पिटोल व्यापार ओर राखी के उत्साह ओर धार्मिक माहौल की भीडभाड से पटा पडा था। एक ओर भाई बहन का त्योंहार तो दुसरी ओर आदिवासी दिवस की गुंज साथ ही राधा स्वामी संत्संग के धार्मिक माहौल में पिटोल आज कुछ रोनक भरा था। तीनों त्योंहारों की व्यवस्था में स्थानीय पुलिस महकम्मा लगा हुआ था। चैकी प्रभारी अशोक बघेल के मार्ग दर्शन में चारों ओर पुलिस बल लगाया गया था जो किसी प्रकार की कानुन व्यवस्था न बिगडे उसके लिये तैनात था। आदिवासी भाईयों ने एक दुसरों को इस अवसर पर बधाई दी वहीं बहनों भाईयों की कलाई पर राखी बांधी। वहीं संत्संग का भी लोगों ने श्रवण किया।

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